सरकलवालों के साथ सफर

मैने जब पहला कदम रखा इस सरकलवालोंकी दुनिया मे तब मुझे पता भी नही था की मुझे क्या करना है मैं किस वजह से वहा आई हु , पर सोचने वाली बात ये है थी की हर दिन में उधर जाने के लिए तैयार रहती थी. फिर समझ में आने लगा की उनका पढाने का अंदाज भी सबसे अलग है .

उनकी इस दुनिया में ढलना थोडा मुश्कील जरुर था , पर आहिस्ता से आदत सी पढने लगी .नए दिन की शुरुवात नए प्रयास नई उम्मीदोसे होने लगी . मुझे यैसा लगने लगा कि यही से एक नई शुरुवात करने की कोशिश करनी चाहिए . फिर इसी उमंग और उम्मीद से मैंने हर दिन उधर जाने का कुछ नया सिखने का प्रयास किया . फिर आहिस्ता से उनके प्रयासों मे घुलमिल गयी .

उनके कारण अनेक नई चिजे सिखने मिली .मन में कुछ कर दिखाने की हिम्मत हुई.

अब यैसा लगने लगा था की में उनके साथ के कारण अनेक नई मंजिलोकी ओर बढने लगी, नई चिजे सिखने लगी.उनका हम पर इतना प्यार देखकर आखे नम हो जाती है और दिल मे प्यार बढ जाता रहा .

उन्ह दिनों में ये भी पता चला कि बाहर की दुनिया उनकी दुनिया के विचारोंसे कितनी परे है .पर उन्होंने पढाई हुई चीज और उनका प्यार हमेशा याद रहेगा.